Friday, 2 September 2011

91. तू हुस्न की मलिका है


तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है,
ये जवानी है या सावन जो इतनी खिली-खिली है.


तेरी आँखों में खुदा का नूर है,
तुझे देखे तो लगता है तू नशे में चूर है.


प्लीज़ बताओ न ,तेरी आँखों को ,
ये चमक कहाँ से मिली है.


तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है,
ये जवानी है या सावन जो इतनी खिली-खिली है.


तेरे रसीले होठों को देखते ही ,मेरी प्यास बढ़ जाती है.
इनको छू पता भी कि,लार टपक जाती है.


ये तो तुम्ही जानती हो कि तेरे ये होंठ,
शहद हैं या मिसरी की डली हैं.


तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है,
ये जवानी है या सावन जो इतनी खिली-खिली है.


देखने में तेरे ये गाल बड़े सिम्पल दिखते हैं,
जब हँसती है तो इनमे डिम्पल दिखते हैं.


और क्या कहें ये सेब सी ढली हैं.
तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है,


तेरे इन केशों के आगे काली घटा फीकी पड़ जाती है,
चेहरे पे छाई जुल्फों में मेरी नज़र गड़ जाती है.


तेरी इन जुल्फों पर ही मेरी नज़र फिसली है,
तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है.


तुझे एक नज़र देखते ही दिल थाम लेता हूँ,
जुबां साथ नहीं देती,दिल ही दिल में तेरा नाम लेता हूँ.


तेरे हुस्न की आग से ही मेरे दिल की शमा जली है,
तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है.


शेरनी-सी कमर से हिरनी-सी चल चलती है.
मुझे देखकर तेरे पीछे सारी दुनिया जलती है.


तेरे पीछे मैं और मेरे पीछे हसीनाओं की भीड़ चली है ,
तू हुस्न की मलिका है या गुलाब की कलि है...



 
 


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