Friday 2 September 2011

96. बुरा वक्त आने पर


बुरा वक्त आने पर सबसे पहले ,

अपने ही गैर हो जाते हैं.



जो जिन्दगी-भर साथ निभाने का वादा करते हैं,

जन्मों-जन्मों के उनसे बैर हो जाते हैं.



असल में अपने वो ही होते हैं,

जो बुरे वक्त में काम आते हैं.



ख़ुशी के आलंम में तो ,

राह चलते भी शामिल हो जाते हैं.



उनको हम क्यों कहें अपना ,

जो मुसीबत में आँखें फेर लेते हैं.



साथ निभाते हैं जब तक हमसे काम हो,

वरना किसी और का दामन थाम लेते हैं.



जब तक उनका काम ना निकले,

कुत्ते की तरह पूंछ हिलाते हैं.



सुबह-शाम करते हैं सलाम ,

अपने अजीज की तरह हाथ मिलाते हैं.



अपनेपन का ढोंग रचते है,

दूर-दूर से रिश्ते निकाल लाते हैं.



लेकिन काम निकल जाये तो ,

घर जाने पर चाय-पानी से बचने को ,



"वो तो घर में नहीं हैं" के अंदाज़ में ,

घरवाली से हाथ हिलवाते हैं.



खुद छुप जाते हैं बिस्तर में ,

पकड़े जाने पर बुखार का बहाना बनाते हैं.



हम समझ जाते हैं उनकी चाल को ,

वो कब कौन-सी बात बनाते हैं.



बुरा वक्त आने पर सबसे पहले,

अपने ही गैर हो जाते हैं...

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