Saturday 10 September 2011

177. अब तक जान नहीं पायें हैं


अब तक जान नहीं पायें हैं,
मुझसे क्या चाहते है आप .


दोस्त भी कहते हैं और,
हाथ मिलाने से भी घबराते हैं आप.


क्या मुझे ये जानने का हक़ भी नहीं,
मुझसे दूरी की वजह क्या है.


कभी चाहती हैं घंटों बातें करना ,
पल में मूढ़ बदल जाने में मज़ा क्या है.


जैसे हमारा कोई रिश्ता ही नहीं,
मुंह फेर कर दूर चले जाते है आप.


कुछ ही दिनों में आप ,
कितने बदल गए हैं.


रिश्ते जो बनाने लगे थे बीच हमारे,
शायद बनने से पहले ही जल गए हैं.


अब इतने समझदार हो गए ,
जो दामन को मुझसे छुडाते हैं आप.


मेरी दोस्ती को इतनी जल्दी,
भुलाने लगे हो.


आपने दिल से मुझे दोस्त माना ही नहीं
फिर जुबां से क्यों बुलाने लगे हो.


अगर सच में दोस्त मानते हो,
फिर कुछ कहने में क्यों शरमाते हैं आप.


अब तक नहीं जान पाए हैं,
मुझसे क्या चाहते हैं आप...

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