Saturday 10 September 2011

157. मंजिल तय करनी होगी अकेले


तारे कितने प्यारे देखो टिमटिमाते,
फिर भी सूरज-सा ना प्रकाश फैलाते.


दूर के रिश्तेदार चाहे कितने हो प्यारे,
वक्त पड़े काम पडोसी हैं आते.


कितने सुंदर चेहरे राह चलते मिल जाते,
दिल का रिश्ता रूप ना देखे,


नज़र पड़े गले मिल जाते.
दुनिया कितनी बड़ी है,कितने लोग हैं आते-जाते,


अपना घर कितना ही छोटा हो,
उसी में सुख-चैन हम हैं पाते.


कौन-सा रास्ता कहाँ है जाता,
हर कोई है बतलाता.


मंजिल तय करनी होगी अकेले,
साथ कोई ना उम्र-भर चल पाता.


उनके संग चलें घर के अन्दर,
साथ उनके ही बाहर निकलें .


सर्दी-गर्मी से बचाएं,ना लगने पैरों में कांटा,
कितने काम की हैं वो चप्पलें.


उनके संग शाम ढले,
उनके संग दिन निकले,


सर पे बैठा लिया हमने,
फिर भी बेवफा वो निकले.


कितना अंतर है उनमें और इनमें ,
बाल वो हमारे सारे चले गए छोड़कर,
गंजा हमें करने को.


मरने तक साथ निभाएं ,
कितनी अच्छी हैं वो चप्पलें.
बेवफाओं का साथ छोड़ दो,


अपनों को पहचान लो.
जिन्दगी-भर इनका साथ ,
ना छोड़ने की ठान लो.


चलो चारों और प्यार का ,
प्रकाश फैलाते,


सबको अपना बना लो,
जितने भी जिन्दगी में है आते.


तारे कितने प्यारे देखो टिमटिमाते,
फिर भी सूरज का ना प्रकाश फैलाते...









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