Sunday 4 September 2011

133. किसी का कितना भी लोगो


किसी का कितना भी लोगो कोई अपणा कहावै,
टूट ज्या जो नाता उसका,नज दीक भी ना आवै.


पल-पल की राखै वो खबर उसकी,
जिसने भी अपणा बतावै.


लाग ज्या जै चोट उसके ,
झट से कालजे  तै लगावै.


किसी का कितना भी लोगो कोई अपणा कहावै,
टूट ज्या जो नाता उसका ,नजदीक भी ना आवै.


कालजे कै लगा कै उसने टुकड़ा चाँद का बतावै,
जिन्दगी-भर खातिर उसको पल्लू पकड़ कै लावै.


बड़ा समझै नादान उसने,
कदे कुछ बतावै उसने कदे कुछ समझावे.


किसी का कितना भी लोगो कोई अपणा कहावै,
टूट ज्या जो नाता उसका ,नजदीक भी ना आवै.


पास हो तो बाँहों में ले के  खिलावै,
एक पल भी बिन उसके ना बीतन पावै.


जुदाई मै उसकी याद घनीये सतावै, 
दर्द हद तै ज्यादा बढ़ के जोर-जोर तै रुलावे.


किसी का कितना भी लोगो कोई अपणा कहावै,
टूट ज्या जो नाता उसका,नजदीक भी ना आवै.


साथ उसके होने पर दुनिया नज़र ना आवै,
उसका साथ हो तो चाहे जंगल में बस जावै.


बिछुड़ के उस तै दुनिया मै कुछ भी ना भावै,
भरी महफ़िल मै भी तन्हाई खान नै आवै.


किसी का कितना भी लोगो कोई अपणा कहावै,
टूट ज्या जो नाता,नजदीक भी ना आवै......




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