Sunday 4 September 2011

120. तुम्हारे दिल के इतना करीब होने पर भी


सब कुछ चाहकर भी ,
कुछ भी ना करने को मजबूर हूँ मैं.


तुम्हारे दिल के इतना करीब होने पर भी ,
तुम्हारी देह से कितना दूर हूँ मैं .


तुम्हारे दिल में है क्या ? सब कुछ जान गया हूँ मैं.
तुम भी जान चुकी होगी मेरे दिल के हर राज को.


जब नज़रें मिलकर दिल को जलाती हो,
मैं देखता ही रह जाता हूँ,मुस्कराने के अंदाज़ को.


सब कुछ चाहकर भी ,
कुछ भी ना करने को मजबूर हूँ मैं.


तुम्हारे दिल के इतना करीब होने पर भी,
तुम्हारी देह से कितना दूर हूँ मैं.


मत लो इम्तिहान मेरा,
दिल चुराने में बड़ा बेईमान हूँ मैं.


किसी भी हद को पर नहीं कर पा रहा ,
अपने फर्ज पर कुर्बान हूँ मैं.


इसीलिए ना चाहकर भी ,
तुमसे इतनी दूर हूँ मैं.


सब कुछ चाहकर भी ,
कुछ भी ना करने को मजबूर हूँ मैं.


तुम्हारे दिल इतना करीब होने पर भी ,
तुम्हारी देह से कितना दूर हूँ मैं.


दिल मेरा भी चाहता है,
तुझसे जी भरकर प्यार करूँ मैं .


कसकर जकड लूं बांहों में,
और तुझसे आँखें चार करूँ मैं.


मेरी नज़रों में नज़रें डालकर देख लो,
तेरे हुस्न के नशे में चूर हूँ मैं.


सब कुछ चाहकर भी ,
कुछ भी ना करने को मजबूर हूँ मैं.


तुम्हारे दिल के इतना करीब होने पर भी,
तुम्हारी देह से कितना दूर हूँ मैं..



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