Sunday 4 September 2011

116. ना जाने क्यों ऐसा लगता है


ना जाने क्यों ऐसा लगता है आजकल,
तू मुझसे नज़र चुराने लगी है.


कौन मिल गया है तुझको,
जो मुझ से पीछा छुड़ाने लगी है.


ना जाने क्यों तन्हाई के आलम में,
तेरी याद कुछ ज्यादा ही आने लगी है.


पहले तो तुने कभी ऐसा नहीं किया,
ना जाने क्यों आजकल ज्यादा ही तडफाने लगी है.


इतनी उलझन में क्यों उलझ रही हो,
बेशर्मी से कह दो किसकी अदा भाने लगी है.


देखकर मुझे नज़रों के सामने,
आँखों में तेरे उदासी छाने लगी है.


मेरे बिना एक पल जीना दुश्वार लगता था,
अब मेरे बिना कैसे जी पाओगी.


मेरी जुदाई को कैसे सह पाओगी ,
मुझे यही चिंता सताने लगी है.


ना जाने क्यों ऐसा लगता है आजकल,
मुझसे दूर तू नहीं मेरी जान जाने लगी है.


ना जाने क्यों ऐसा लगता है आजकल,
तू मुझसे नज़र चुराने लगी है.


भर गया दिल गर मुझसे अब,
दूर चली जाओ मत सताओ अब.


तन्हा जीना सिख लेंगे,
पीछा भी छोड़ जाओ अब.


हम अकेले ही जी लेंगे,
तू जो  किसी और को चाहने लगी है.


मैं भी अब तेरे लिए बजाना छोड़ दूंगा,
तू जो अब किसी और के लिए गाने लगी है.


ना जाने क्यों ऐसा लगता है आजकल,
तू मुझसे नज़र चुराने लगी है...




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