मिल गई मुझको तो मंजिल मेरी,
अब तेरा क्या काम सवारी.
तेरे संग खेले और मुस्कराते रहे,
सफ़र जिन्दगी का काटते रहे.
कभी किये वादे संग जीने-मरने के,
तो कभी लगी यारी जी से भारी.
मिल गई मुझको तो मंजिल मेरी,
अब तेरा क्या काम सवारी.
सफ़र जिन्दगी का कटता है बड़ी मुश्किल से,
गुजरना पड़ता है,कभी तन्हाई से ,कभी महफ़िल से.
जब से तुम थी मेरी जिन्दगी में आई,
दूर भाग गई मुझसे तन्हाई.
मगर अब तो तुम भी रहने लगी हो खफा-खफा सी मुझसे,
कभी-कभी ही होती है मुलाक़ात हमारी.
मिल गई मुझको मंजिल मेरी,
अब तेरा क्या काम सवारी.
यूं तो पहले भी जिन्दगी मेरी खुशनसीब थी.
तेरे आने से जिन्दगी में मेरे बहार आ गई.
तन्हा तो पहले भी नहीं था ,मगर तेरे आने से,
खुशियों की भरमार आ गई.
पाकर तेरा संग गुलबदन जैसा,
लगने लगी जिन्दगी मुझको बड़ी प्यारी,
मिल गई मुझको तो मंजिल मेरी,
अब तेरा क्या काम सवारी.
मैंने तो तुमसे दूर रहना सीख लिया है ,
अब तू भी बसा ले अपनी दुनिया न्यारी.
मिल गई मुझको तो मंजिल मेरी,
अब तेरा क्या काम सवारी.....
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