Sunday 4 September 2011

145. हथियार हाथ का धन धोरे का


हथियार हाथ का धन धोरे का,
मन राखिये तू मोसकर.


बड़ी कठिन डगर इस यौवन की,
इस पर चालिए तू सोचकर.


जवानी के इस दौर में बहुत यार मिलेंगे,
कुछ प्यारे कुछ गद्दार मिलेंगे.


कुछ देंगे साथ पल दो पल का,
कुछ साथ दिन दो-चार चलेंगे.


यारां के बीच रहिये ,
बावले तू होश कर.


हथियार हाथ का धन धोरे का,
मन राखिये तू मोसकर.


न्यू गलियों के म्हा ना घूमा करदे बेकार में,
चालिए हर कदम तू सोच-विचार के.


बेरा ना कद कौन-सी आफत पड़ ज्या,
झगड़े मोल लेने पड़ ज्या बेकार के.


डंग-डंग दुःख बिखरे पड़े है,
और खुशियाँ मिलेंगी कोस दो कोस पर.


हथियार हाथ का धन धोरे का,
मन राखिये तू मोसकर.


पढ़-लिखकर तू भविष्य अपना संवार ले,
ना बैठना बेकार में किसी डगर पे.


दिन-रात पढ़ाई में मन लगाना,
ना रखना नज़र किसी हसीना के फिगर पे.


ना जीना कभी जिन्दगी को,
किसी की खुशियाँ खोसकर.


हथियार हाथ का धन धोरे का,
मन राखिये तू मोसकर.


बड़ी कठिन डगर है इस यौवन की ,
इस पर चालिए तू सोचकर....



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