Saturday 10 September 2011

188. मगर जालिम ज़माने ने


जुल्फें तो एक ज़माने में रखी थी हमने भी बड़ी-बड़ी,
मगर जूओं ने हमारी जुल्फों को कटवा दिया.


प्यार तो बहुत था हिन्दू और मुसलमानों में ,
मगर अंग्रेजों ने वतन को बंटवा दिया .


कमजोर तो बहुत तो पढाई में ,मगर मास्टर के 
डंडों ने एक-एक शब्द को रटवा दिया .


कितना प्यार करते थे एक ज़माने में ,मगर बेवफाओं ने 
मोहब्बत शब्द को ही दिल के मंदिर से मिटवा दिया.


कभी चाह था एक घर बनवाएं उनके घर के सामने ,
हम नींव भी न खोद सके ,उन्होंने अपने घर को ही हटवा दिया .


एक रात योजना बनाकर चले थे महबूबा को चूमने ,
मगर बेवफा ने अँधेरे का फायदा उठाया,कटड़े को चटवा दिया.


हमने सोचा था भिखारी-मुक्त करेंगे अपने देश को ,
मगर जालिम ज़माने ने हमसे ही मंगवा दिया .


हमने जिसको भी चाह अपना हमसफ़र बनाना,
उसी ने किसी और के संग शादी का कार्ड हमें थमा दिया .


हमने जब भी कुछ नया पहना फैशन के तौर पर ,
ज़माने ने हमें एक मशहूर मसखरा बना दिया .


जब भी चाहा संभलकर चलने को ,
जो भी मिला एक पेग हाथों में थमा दिया .


अभी जवां भी नहीं हुए थे ठीक से मगर ज़माने-भर के 
ग़मों ने बचपन में ही बूढा बना दिया .


No comments:

Post a Comment