आग है लगी हुई ,कोई तो बुझाएगा .
दिन-भर दिल कहीं लगता नहीं .
रात को कहाँ चैन आएगा .
कुछ समझ नहीं आता क्या करें क्या नहीं ,
मुझको कौन समझाएगा .
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा ,
खुद को ही करना पड़ता है हर काम अपना ,
अपने ही जब बेगाने हो गए,
किसका देखें अब सपना .
मेरी इस वीरान-ए-जिन्दगी में,
कौन खुशियों का बाग़ लगाएगा ,
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा .
इंतजार रहता है अब हर घडी ,
कब कोई अपना मिले .
दिल में दुखों का भंडार है ,
ना जाने कब ये खुशियों से खिले.
इसी आस में जी रहे हैं ,
कभी तो कोई आएगा.
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा.
कुछ दिन और तनहा रहे तो ,
सारी आस टूट जाएगी.
और तो सभी हमसे खफा हैं ही ,
ये जिन्दगी भी हमसे रूठ जाएगी.
इसके बाद क्या होगा देखा जायेगा ,
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा.
दिन में दिल कहीं लगता नहीं ,
रात को चैन कहाँ आएगा .