Saturday 20 August 2011

27. ये रिश्ता अपना


अब कभी ये  मत सोचना कि फिर मना लूंगी ,
इस तरह तो कई बार रूठ चुका है .


तूने बेवफाई ऐसी की है ,
अब मनाने का मौका ही नहीं मिलेगा ,
ये रिश्ता अपना जिन्दगी-भर के लिए टूट चुका है .


कितनी बार रूठ चुके हैं हम ,
कितनी बार मान चुके हैं .


अब तेरे हाथ नहीं आयेंगे ,
तेरी असलियत पहचान चुके हैं .


तेरी चालाकी को नहीं समझ पाए ,
तुझ पर ऐतबार कर बैठे .


तुम्हे चाहत थी मेरे तन की,
हम तुम्हें मन से प्यार कर बैठे .


तेरे पत्थर दिल से टकराकर ,
मेरा कोमल हृदय  टूट चुका है .


अब कभी ये मत सोचना कि फिर मना लूंगी ,
इस तरह तो कई बार रूठ चुका है .


मेरा शीशा -ए-दिल पत्थरों से टकराकर  फूट  चुका है ,
तेरा नसीब भी अब तुझसे रूठ चुका है .


तूने बेवफाई ऐसी की है ,
अब दिल को समझाने का मौका ही नहीं मिलेगा .
ये रिश्ता अपना जिन्दगी-भर के लिए टूट चुका है .

No comments:

Post a Comment