अब कभी ये मत सोचना कि फिर मना लूंगी ,
इस तरह तो कई बार रूठ चुका है .
तूने बेवफाई ऐसी की है ,
अब मनाने का मौका ही नहीं मिलेगा ,
ये रिश्ता अपना जिन्दगी-भर के लिए टूट चुका है .
कितनी बार रूठ चुके हैं हम ,
कितनी बार मान चुके हैं .
अब तेरे हाथ नहीं आयेंगे ,
तेरी असलियत पहचान चुके हैं .
तेरी चालाकी को नहीं समझ पाए ,
तुझ पर ऐतबार कर बैठे .
तुम्हे चाहत थी मेरे तन की,
हम तुम्हें मन से प्यार कर बैठे .
तेरे पत्थर दिल से टकराकर ,
मेरा कोमल हृदय टूट चुका है .
अब कभी ये मत सोचना कि फिर मना लूंगी ,
इस तरह तो कई बार रूठ चुका है .
मेरा शीशा -ए-दिल पत्थरों से टकराकर फूट चुका है ,
तेरा नसीब भी अब तुझसे रूठ चुका है .
तूने बेवफाई ऐसी की है ,
अब दिल को समझाने का मौका ही नहीं मिलेगा .
ये रिश्ता अपना जिन्दगी-भर के लिए टूट चुका है .
No comments:
Post a Comment