Sunday 21 August 2011

35.दिल कहीं लगता नहीं


दिल कहीं लगता नहीं ,
अब क्या सुने और क्या कहें .

नींद भी आती नहीं ,
अब क्या  जागें  और क्या सोयें .

कोई अपना रहा ही नहीं ,
कैसे होंगे पूरे अरमान .

किसको रखें अब इस दिल में ,
बनाके अपना मेहमान .

सुख-चैन पायें कहाँ ,जाएँ तो जाएँ कहाँ ,
तन्हाई में रहें तो कैसे रहें .

दिल कहीं लगता नहीं,
अब क्या सुने और क्या कहें .

वो छोड़कर चले गए हमें ,
गुस्से में यों तनकर.

हम सह गए तन्हाई ,
उनके प्यार में उल्लू बनकर .

प्यार में तो सब ठीक है ,
मगर बेवफाई के दाग को कैसे सहें .

दिल कहीं लगता नहीं ,
अब क्या सुने और क्या कहें .

उनके संग रहकर गुजरे हैं ,
जो पल सुख -चैन के .

तंग करते हैं अब मुझे,
वो पल दिन के रैन के .

कब तक अपने ही ,
आंसूओं में हम बहें .
 
दिल कहीं लगता नहीं ,
अब क्या सुने और क्या कहें .

नींद भी आती नहीं ,
अब क्या जागें और क्या सोयें ....


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