Friday 19 August 2011

20. जब तन्हा होता हूँ


जब तन्हा होता हूँ तो -याद करता हूँ ,
वो सर्दियों के दिन ,

वो दोपहर को मेरा इंतजार करना ,
वो साथ बैठकर खाना खाना ,
वो बांहों में भरकर प्यार करना ,

लोग जलते थे कभी हमारा ,
इतना गहरा प्यार देखकर .

आंहे  भरकर रह जाते थे ,
हमें एक-दूजे के लिए बेकरार देखकर .

एक पल की दूरी सहन करना ,
दुश्वार हो जाता था .

बांहों में लेकर जुल्फों में 
जब छुपाती थी प्यार से ,
ना जाने किन ख्यालों में खो जाता था .

जब तन्हा होता हूँ तो याद करता हूँ -
एक समय था जब तेरे दिल में ,
मेरी ही चाहत थी .

दूसरा रूप तेरा ये है जो 
अब सामने आया है ,
तुझे फूटी आँख नहीं भाता हूँ.

तेरे उस रूप को मेरा प्यार में सताना भी 
कितना अच्छा लगता था.

एक रूप जो तुने आज बनाया है ,
लाख भला करने पर  भी ,
तुझसे बुरा कहलाता हूँ .

लेकिन जब भी तू तन्हा होती है ,
याद तुझे  मैं ही आता हूँ ......

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