जब तन्हा होता हूँ तो -याद करता हूँ ,
वो सर्दियों के दिन ,
वो दोपहर को मेरा इंतजार करना ,
वो साथ बैठकर खाना खाना ,
वो बांहों में भरकर प्यार करना ,
लोग जलते थे कभी हमारा ,
इतना गहरा प्यार देखकर .
आंहे भरकर रह जाते थे ,
हमें एक-दूजे के लिए बेकरार देखकर .
एक पल की दूरी सहन करना ,
दुश्वार हो जाता था .
बांहों में लेकर जुल्फों में
जब छुपाती थी प्यार से ,
ना जाने किन ख्यालों में खो जाता था .
जब तन्हा होता हूँ तो याद करता हूँ -
एक समय था जब तेरे दिल में ,
मेरी ही चाहत थी .
दूसरा रूप तेरा ये है जो
अब सामने आया है ,
तुझे फूटी आँख नहीं भाता हूँ.
तेरे उस रूप को मेरा प्यार में सताना भी
कितना अच्छा लगता था.
एक रूप जो तुने आज बनाया है ,
लाख भला करने पर भी ,
तुझसे बुरा कहलाता हूँ .
लेकिन जब भी तू तन्हा होती है ,
याद तुझे मैं ही आता हूँ ......
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