Sunday 21 August 2011

44. कोई तो बुझाएगा

           आग है लगी हुई ,कोई तो बुझाएगा .
दिन-भर दिल कहीं लगता नहीं .
रात को  कहाँ चैन आएगा .


कुछ समझ नहीं आता क्या करें क्या नहीं ,
मुझको कौन समझाएगा .
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा ,


खुद को ही करना पड़ता है हर काम अपना ,
अपने ही जब बेगाने हो गए,
किसका देखें अब सपना .


मेरी इस वीरान-ए-जिन्दगी में,
कौन खुशियों का बाग़ लगाएगा ,
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा .


इंतजार रहता है अब हर घडी ,
कब कोई अपना मिले .
दिल में दुखों का भंडार है ,

ना जाने कब ये खुशियों से खिले.
इसी आस में जी रहे हैं ,
कभी तो कोई आएगा.
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा.


कुछ दिन और तनहा रहे तो ,
सारी आस टूट जाएगी.


और तो सभी हमसे खफा हैं ही ,
ये जिन्दगी भी हमसे रूठ जाएगी.


इसके बाद क्या होगा देखा जायेगा ,
आग है लगी हुई कोई तो बुझाएगा.


दिन में दिल कहीं लगता नहीं ,
रात को चैन कहाँ आएगा .


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