Friday 12 August 2011

1. तेरी याद फिर आई है

               शाम होने को  है घटा घिर आई है 
   ऐसे मौसम में तेरी याद फिर आई है 




वर्षा को तो आना ही पड़ेगा क्योंकि 
 बिन वर्षा के धरा की गर्मी जा नहीं सकती 




तेरे बिन मैं  जलकर राख़ हो रहा हूँ 
  तेरी क्या मजबूरियां हैं कि तू आ नहीं सकती 




वर्षा से धरती ने तो गर्मी से निजात पाई है 
     ऐसे मौसम में तेरी याद फिर आई है 




घटा हरपलल अपना रुख बदल रही है 
   हवा कभी इधर तो कभी उधर चल रही है 
              


          मौसम के बदलते रुख को देखकर मेरी बांहें                                  तुझे आगोश में लेने को मचल रही हैं 
   


ऐसे में क्यों तेरे चेहरे पर उदासी छाई है 
   ऐसे मौसम में तेरी याद फिर आई है 




अब तू न आ सके तो न  सही 
   पीछे  जो प्यार तुने दिया वो कम नहीं 
              


        कोई किसी के बगैर रहे न रहे मौसम कुछ भी कहे                      मजबूरी में तेरे न आने का मुझे कोई गम नहीं 
  


तू मेरे जीवन में कितनी खुशियाँ लाई है 
     ऐसे मौसम में तेरी याद फिर आई है .



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