Friday 12 August 2011

6. फिर भी न जाने क्यों


  तुम्हारे न मिलने से न जाने क्यों ,
मैं खुद खोया -खोया सा रहता हूँ .
तुमने मेरी आँखों की नींद छीन ली है  ,
फिर भी न जाने क्यों सोया-सोया सा रहता हूँ .
तुम्हारे लिए क्यों  इतना बेचैन रहता हूँ ,
कुछ समझ नहीं पता हूँ .
पता है तुम मुझे मिल नहीं सकती कभी ,
फिर भी न जाने क्यों तुम्ही को चाहता हूँ .
मेरी जिन्दगी में तुम्हारे आने से पहले भी तनहा था,
मगर तन्हाई का एहसास न था .
अब क्यों तह महसूस करता हूँ ,
जबकि पहले भी कोई मेरे पास न था .
जी में आता है हर जगह  तेरा ही जिक्र चलाऊं.
फिर भी न जाने  क्यों किसी से कुछ नहीं कहता हूँ .
जी में आता है की जी भर के खुशियाँ  मनाऊं ,
फिर भी न जाने क्यों तेरी जुदाई को चुपके से सहता  हूँ 
जिन्दगी के  किसी मोड़ पर तो  मुलाक़ात  होगी  ही ,
बस इसी इंतजार में रहता हूँ .
तुम तो न जाने कब की भूल गई मुझे ,
मैं फिर भी तुम्हे ही प्यार करता हूँ .......
  

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