Sunday 4 September 2011

118. नींद नहीं आती आँखों में,


नींद नहीं आती आँखों में,
जबसे तुमसे आँख लड़ी हैं,


एक पल चैन नहीं मिलाता तुम बिन,
हर पल तू ही नज़रों के सामने खड़ी है.


मैं तेरे पीछे पड़ा हूँ,
 या तू मेरे पीछे पड़ी है,


सपनों में भी पीछा नहीं छोडती,
तू लड़की है या जादू की छड़ी है.


मेरे दिमाग पर छा गई है तू,
वरना मुझे किसी से क्या पड़ी है.


नींद नहीं आती आँखों में,
जब से तुमसे आँख लड़ी हैं.


तेरा दिल कहे तो हाँ कह दो ,
क्यों जिद पर अब तक अड़ी है.


मेरे दिल को चैन नहीं आता,
जब से दिल में तू बड़ी है.


क्या स्वाद तुझे चखने में है,
अभी तक नहीं जान पाया हूँ.


तू मिश्री सी मीठी है,
या करेले सी कड़ी है.


नींद नहीं आती आँखों में,
जब से तुमसे आँख लड़ी हैं.


तुझे चाँद कहूँ या सूरज कहूँ,
या तू तारों की लड़ी है.


कितनी चमकीली है जैसे,
हीरे-मोतियों से जड़ी है.


नींद नहीं आती आँखों में,
जब से तुमसे आँख लड़ी है.


हर लड़की में तेरी सूरत नज़र आती है,
जिसे भी छूता हूँ ,एक थप्पड़ जड़ जाती है.


तभी टूटता है मेरा सपना,
और हकीक़त नज़र आती है.


इस तरह ना जाने ,
कितनी लड़कियों से मार पड़ी है.


नींद नहीं आती आँखों में ,
जब से तुमसे आँख लड़ी हैं...





 




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