तेरे गम को ऐसे भूलाने चला था,
ना जा के कहीं और मयखाने चला था.
वहाँ जा के जो देखा कि,
डूबे पड़े हैं सब मद के नशे में.
देखकर वहाँ का माहौल ,
क्या करता मैं ऐसे में.
उनके संग खुद को मिलाने चला था,
तेरे गम को ऐसे भूलाने चला था.
कोई पी रहा था ,
पूरी बोतल को मुंह लगा के.
कोई पी रहा था ,
आधे पेग में भी पानी मिला के.
मैं भी संग उनके एक पेग बनाने चला था,
तेरे गम को ऐसे भूलाने चला था.
किसी को गम था ,
अपनों के दूर चले जाने का.
कोई सुना रहा था किस्सा,
अपनों के बेवफाई कर जाने का.
उनके गम में खुद को रुलाने चला था,
तेरे गम को ऐसे भूलाने चला था.
ना मिला सुकूं कहीं,
नशा जल्द ही उतर गया.
तेरे गम मर ना जाऊं कहीं,
तेरी कसम मैं डर गया.
तेरे गम की आग में खुद को जलाने चला था,
तेरे गम को ऐसे भूलाने चला था.
ना जा के कहीं और मयखाने चला था,
तेरे गम को ऐसे भूलाने चला था....
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