Sunday 4 September 2011

148. तुम बिन मुझे


तुम बिन मुझे हर तरफ 
खालीपन का अहसास होता है.


रोने को दिल करता है ,
जब कोई नहीं मेरे पास होता है.


तुम बिन अपना ही घर ,
मुझे बेगाना लगता है.


तुम बिन हर कोई यहाँ पर ,
अनजाना लगता है.


मैं समझ नहीं पा रहा हूँ,
वो कौन-सा बंधन ,कौन-सी मजबूरी है.


मेरी अपनी छाया से ,
जो इतनी दूरी है.


मुझसे जुदा न होकर भी,
जुदा हो गई हो.


आँखों में तेरी तस्वीर लिए फिरता हूँ,
फिर भी दिखाई नहीं देती,क्या खुदा हो गई हो.


तुम बिन ना खाने को जी करता है ,
ना सोने को जी करता है.


हँसी छिन गई है होंठों की,
बस रोने को जी करता है.

मैं अपने-आप में खोया रहता हूँ,
क्या हर कोई ऐसे हो खोता है.


जुदा होने पर अपनों के ,
क्या हर कोई ऐसे ही रोता है.


तुम बिन मुझे हर तरफ,
खालीपन का अहसास होता है...





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