Sunday 4 September 2011

139. ये आँसूं हैं औरत के हथियार


ये आँसूं हैं औरत के हथियार ,
नहीं इन पर आदमी का अधिकार.


इनसे ये पत्थर को पिंघला देती हैं,
लोहे को इनकी गर्मी से गला देती हैं.


कमजोर दिल वालों पर करती हैं इनसे वार,
ये आँसूं हैं औरत के हथियार.


आदमी का दिल अन्दर से कितना भी रोये,
मगर आँसूं बहा नहीं सकता.


मुंह से कुछ भी बयान करे,
लेकिन आँखों से कुछ बता नहीं सकता.


अगर कोशिश करे भी तो यही सुनने को मिलता है,
क्या औरत की तरह आँसूं बहता है.


कैसे यकीन दिलाये इसके दिल में भी है प्यार,
ये आँसूं हैं औरत के हथियार.


औरत छोटी-छोटी बातों पर आँसूं बहा देती है,
झूठे आंसूओं से सबको बहका देती है.


इनको देखकर लगता है ये बड़ी दुखी हैं,
मगर ये तो आदमी को सताकर ही सुखी हैं.


बड़ी खुश होती हैं आदमी को फंसाकर यार,
ये आँसूं हैं औरत के हथियार.


जब-जब भी औरत ने आँसूं बहाए हैं,
महाभारत जैसे युद्ध कराये हैं.


झूठे आंसूओं  का लेकर सहारा,
भाई-भाईओं में झगड़े कराये हैं.


मौका मिलते ही आंसूओं से करती हैं ये वार,
ये आँसूं हैं औरत के हथियार...







No comments:

Post a Comment