श्रृद्धा ,भक्ति और नेक कमाई,
धोखेबाजी,बवंडर और बेईमानी ने खा लिए.
प्यार,प्रेम,चाहत और भलाई,
वैर-विरोध,इर्ष्या और स्वार्थ के कारण पीछे जा लिए.
ना कोई यार-दोस्त, ना कोई माता-पिता,
ना रहा कोई बहन-भाई,
बंधन ये सब अब मतलब के रह गए.
ना वेद-उपनिषद ,ना गीता का ज्ञान रहा.
गए ऋषि-मुनि और सब संत-ज्ञानी,
जो बात ज्ञान की कह गए.
ना रही पढाई,ना रही समाई,
बस फ़िल्मी-गाने और डायलोग याद रह गए.
ना पति-पत्नी का वो प्यार रहा,
ना वो विश्वास की डोर रही.
धोखा देना सीख लिया,ना रहा उम्र-भर का साथ,
आज यहाँ है रात बिताई ,कल कहीं और सही.
बल भक्ति में है ना कि धातु-पत्थर ,
और मिट्टी की मूरत में.
सुन्दरता बस्ती है चरित्र में ,
ना कि नर-नारी की सूरत में.
नेकी कर और कुए में फेंकना का,
जमाना अब बीत गया.
काम ना करके भी एहसान करने वाला,
आज समझो जीत गया.
सच्चाई,ईमानदारी और इंसानियत का भूत,
अब नहीं किसी के सिर चढ़ पाता है.
झूठ,बेईमानी और हैवानियत के बल ,
इन्सान ऊँचाई के शिखर चढ़ जाता है ...
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