Sunday 4 September 2011

150. तन्हाई में अपनों की याद


जिन्दगी में कभी-कभी आदमी ,
इतना मजबूर हो जाता है.


ना चाहते हुए भी ना जाने क्यों ,
अपनों से कोसों दूर हो जाता है.


तन्हाई में अपनों की याद ,
कुछ ज्यादा ही आती है.


कुछ वश में नहीं रहता,
जब याद बेहद सताती है.


उनका चेहरा जब हर शख्स में,
नज़र आने लगता है.


दर्द तन्हाई का हद से ज्यादा,
सताने लगता है.


एक पल तो शायद तन्हाई का,
अपनों के बिन बीत जाता है.


मगर उम्र-भर के लिए तनहा,
अपनों के बिना कहाँ रहा जाता है.


एक पल तन्हाई का ,
सोचते-सोचते गुजर जाता है.


मगर अगले ही पल,
जब हकीक़त से सामना होता है.


याद कर-करके उनको ,
दिल ही दिल में बहुत रोता है.


उनकी जुदाई का गम ,
किसी से कह नहीं सकते,


मगर एक पल के लिए भी,
बगैर उनके रह नहीं सकते .


दिल रोता है अन्दर ही अन्दर,
मगर बाहर से मुस्कराना पड़ता है,


जब अपनों की गम-भरी यादों को लेकर,
किसी की ख़ुशी में जाना पड़ता है....



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