Sunday 4 September 2011

128. अब तो पहचान जाओ ,मैं कौन हूँ,


इन हवाओं से ,इन फिजाओं से ,
ये मत पूछो - मैं कौन हूँ.


मेरी निगाहों से,इन अदाओं से, 
देखो,पहचानों - क्यों मैं मौन हूँ.


इन राहों का ,इन गाँवों का,
परखो-क्या मैं डोन हूँ.


इन पेड़ों की छाँव में,इन बाँहों में,
आने वालों से पूछो-मैं उनका कौन हूँ.


मेरी हंसीं बातों से,मेरी प्यार भरी मुलाकातों से,
विचारो-कैसे मैं सबकी जान हूँ.


मेरी मेहनत आई है क्या काम,
क्यों करते हैं लोग मुझे नमस्ते,राम-राम.


क्यों  मिला है मेरी देह को आराम,
यूं ही ना बहको ,ना किसी की बातों में आओ.


मेरे इस नुस्खे को एक बार तो आजमाओ,
करो जी-तोड़ मेहनत,मनचाहा फल पाओ.


नक़ल से तुम जो काम करोगे,
फिर ना एक पल आराम करोगे.


ना रात को नींद आएगी,
ना दिन को करार आएगा,


ना मेहनत करोगे,काम से जी भी चुराओगे,
तो तुम पे ना किसी को प्यार आएगा.


मेहनत से काम करो,और ईमानदारदार रहो ,
किसी काम को छोटा ना समझो,करने को तैयार रहो.


इन सब गुणों के कारण ही,
मैं सभी का प्यारा हूँ.


मेरा जो सच्चा साथी है,
मैं उसका हर पल का सहारा हूँ.


दूसरों की भलाई की फरियाद करता हूँ,
सुख-दुःख में सभी को याद करता हूँ...


अब तो पहचान जाओ ,मैं कौन हूँ,
किसी से मत पूछो,खुद जान जाओ,
क्यों मैं मौन हूँ.............



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