Saturday 10 September 2011

169. दिल डरता है


आपको देखकर थोडा अपनापन-सा लगता है ,
पर दूजे ही पल ना जाने क्यों,
एक अजनबीपन-सा आ जाता है.


विश्वास करने को मन करता है,
पर दूजे ही पल ना जाने क्यों,
उसके टूट जाने से भी दिल डरता है.


यूं तो कमजोर नहीं हूँ मैं,
पर सच्चे दोस्त कम ही मिलते हैं ,
ऐसे दोस्तों से दूर जाने को भी दिल नहीं करता है.


दूर गए तो भी हमेशा याद रखेंगे,
तुम भी याद रखोगे जिन्दगी-भर,
यही मेरा दिल चाहता है.


जिसे मैं प्यार करूँ वो हर पल मेरे पास रहे ,
जिन्दगी के हर मोड़ पर ,
उसकी कमी महशूश करता हूँ.


पास ना होने पर भी ,
हर पल उसको दिल के पास,
होने का अहसास करता हूँ.


कभी ना भूल पाऊं उसे ,
और कुछ ना कर पाऊं तो ,
ना भूलने की फरियाद करता हूँ.


प्यार क्या है सिखाया उसने,
किसी के दिल में कैसे रहते हैं ,
सब कुछ सिखाया उसने.


दिल के अरमानो को जगाया उसने ,
दिल से उसके अहसानों का,
शुक्रिया अदा करता हूँ.


कभी दूर ना जाऊं उससे,
बस हमेशा यही सोचकर ,
डरा करता हूँ...........






No comments:

Post a Comment