Saturday 3 September 2011

108. याद क्यों आएगी


याद क्यों आएगी तुमको हमारी,
मिल गई तुम्हें जो जीवन-भर की सवारी.


हमारे संग मिलती थी पल-भर की खुशियाँ ,
उनके संग मिलेंगी खुशियाँ जीवन की सारी.


यार तो सिर्फ यार होता है ,
मगर पति तो जीवन-भर का सेवादार है .


हम भला क्या दे सकते थे तुम्हें सिवा गम के,
पति से सेवा करवाना तुम्हारा अधिकार है.


हम नहीं ढो पाते उम्र-भर बोझ तुम्हारा,
लेकिन उनकी तो है ये जिम्मेदारी.


याद क्यों आएगी तुमकू हमारी,
मिल गई तुम्हें जो जीवन-भर की सवारी.


हम तो प्यार भी देते थे तो,
ज़माने से नज़रें चुराकर.


मगर वो तो रखेंगे तुम्हें ,
हमेशा दिल से लगाकर.


उनको है अधिकार पति-परमेश्वर कहलाने का,
हमारी तो सिर्फ थी यार्री.


याद क्यों आएगी तुमको हमारी,
मिल गई तुम्हें जो जीवन-भर की सवारी.


हमें तो अब याद भी ना करोगी,
हमारी यादें लगने लगेंगी भरी.


काटने लगेंगी उनके संग रातें रंगीन,
भूल जाओगी प्यार भरी बातें वो सारी.


मगर जब भी याद आयें हम भूलकर कभी,
आँखे बंद करके देख लेना दिल में तस्वीर हमारी.


याद क्यों आएगी तुमको हमारी,
मिल गई तुम्हें जो जीवन-भर की सवारी...






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