Sunday 4 September 2011

142. करें भी तो क्या करें तुम बिन,


नींद नहीं आती रातों में तुम बिन,
बिस्तर बैरी लगता है.


ख्याल नहीं रहता खुद को,
कब ये दिन निकलता है.


आँखों में रहती है तस्वीर तेरी,
और कुछ भी नज़र नहीं आता है.


जाएँ भी तो जाएँ कहाँ ,
तेरी यादों में बैठे-बैठे दिन ढल जाता है.


करें भी तो क्या करें तुम बिन,
कुछ काम भी याद नहीं आता है.


शायद शाम से पहले ही मर जाऊं,
तुम बिन कुछ भी नहीं भाता है.


पल-पल मुश्किल हो रहा है जीना,
बस अब तो दम निकला जाता है.


और उस तरफ एक तुम हो,
मेरा ख्याल भी नहीं आता है.


याद क्यों आएगी भला तुम को मेरी,
तुम्हारा तो एक दोस्त जाता है तो दूसरा चला आता है .


कितनों को रखती हो बाँहों में,
और कितने हैं तेरी निगाहों में.


तेरा दिल तो बहल जाता है,
मगर मेरा तो तुम बिन कलेजा फटा जाता है.


काश मुझे भी चाहने वाले होते हजारों,
मेरा भी दिल तेरी तरह बहल जाता.


ना चिंता होती किसी के रूठने पर मनाने की,
एक जिन्दगी से जाता तो दूसरा आ जाता.


फिर नींद भी आती तुम बिन ,
और घुट-घुट कर मरने से भी बच जाता...




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