Sunday 4 September 2011

125. किसी की तरफ प्यार से मुस्करा तो सही


इश्क़,मोहब्बत,प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं,
किसी की तरफ प्यार से मुस्करा तो सही.


दिल लगा के देखो क्या मज़ा है दिल्लगी में,
दिल का लगाना खाली हवा तो नहीं.


क्यों चाहते हैं लोग आँखें चार करना,
किसी की नज़रों में नज़र डालकर दिखा तो सही.


क्यों पागल हो जाते हैं लोग किसी के लिए,
किसी को दिल में बसा तो सही.


क्यों किसी को रात-भर नींद नहीं आती,
दिन का चैन जो खोता है,दिवाना होता है वही.


क्यों पल-भर की जुदाई जान निकाल लेती है,
जबकि यार होता है उसका यहीं कहीं न कहीं.


क्यों करते हैं लोग इंतजार किसी का,
अपना कोई यहाँ है या नहीं बता तो सही.


क्यों कहते है किसी को हम अपना सिर्फ अपना,
किसी से अपनेपन का नाता यहाँ है या नहीं.


क्यों कोई जान से भी बढ़कर प्यारा बन जाता है,
किसी के लिए अपनी जान गवां तो सही.


क्यों कहते हैं किसी को-"तू मेरे दिल में रहता है",
जबकि दिल में रहने की जगह तो नहीं.


क्यों चाहते हैं किसी के लिए चाँद-तारे तोड़ना,
चाँद-तारे तोड़कर लाना संभव तो नहीं.


ये सब प्यार ही तो है,प्यार के सिवा,
इन सबकी कोई वजह तो नहीं.


प्यार असंभव को संभव कर देता है,
इस बात को दिल से मानकर दिखा तो सही.


इश्क़,मोहब्बत,प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं,
किसी की तरफ प्यार से मुस्करा तो सही...




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