Saturday 10 September 2011

179. आज वो ही


मुझे देखकर उदास ,
आँखें नम हो जाती थी जिनकी कभी.


आज वो ही रोता हुआ छोड़कर ,
ख़ुशी से दूर चले जाते हैं.


मेरे कंधे पर सिर रखे बिना ,
नींद नहीं आती थी जिनको कभी,


आज वो ही मुंह फेरकर ,
गहरी नींद में सो जाते हैं.


मुझसे करते थे जो शिकायत,
प्यार कम नहीं करना कभी,


आज वो ही बिना वजह ,
गुस्से में लाल हो जाते हैं.


जिनका था अटूट विश्वास ,
मेरे प्यार पर कभी.


विश्वास की डोर को ,
आज वो ही तोड़कर चले जाते हैं.


बाँहों में भरकर,
प्यार से चूमते थे जिनको कभी.


मुंह  को चिढ़ाकर ,
आज वो दिल को जला जाते हैं.


खुद ना बदलने की,
कसम खाते थे जो कभी.


आज वो ही पल-पल में,
अपना रंग बदल जाते हैं...





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