Saturday 3 September 2011

101. कैसे पागल हो जाता हूँ


मिलने को मैं उससे ,
कैसे पागल हो जाता हूँ.


मैं जान भी नहीं पाता कब,
उसके ख्यालों में खो जाता हूँ.


जब याद उसकी आती है,
कुछ भी याद नहीं रहता.


आई लव यु कहके कुछ भी,
उसके बाद नहीं कहता.


दर्द जब ज्यादा सताए तन्हाई का,
चुपके से सह जाता हूँ.


मिलने को मैं उससे ,
कैसे पागल हो जाता हूँ.


देखूं जो एक पल उसे ,
चमक आँखों में आ जाती है.


हवा जो आये टकराकर उससे,
महक साँसों में छा जाती है.


क्या बताएं कौन-सी अदा है उसकी,
जो दिल को भा जाती है.


बिन देखे उसे कुछ भी करने को,
दिल नहीं करता है .


उसके बगैर तो मैं ना जाने क्यों,
बेजान-सा हो जाता हूँ.


मिलने को मैं उससे ,
कैसे पागल हो जाता हूँ.


खुद शादी करके चली गई,
मुझे कुंवारा छोड़कर.


अब तो आगे से निकल जाती है,
मुझसे मुँह मोड़कर.


मैं नहीं जानता मुझे गलत फहमी है,
या उसकी ना मिलने की कोई मजबूरी है.


कुछ समझ नहीं आता,
क्यों हमारे बीच इतनी दूरी है.


हर बार जब ऐसा होता है तो,
 मैं सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ.


जिससे भी दिल लगाना चाहता हूँ,
उसी से दूर हो जाता हूँ.


उसकी तन्हाई को सह नहीं पाता हूँ,
मिलने को मैं उससे मजबूर हो जाता हूँ.


किसी और को बसा नहीं सकता दिल में,
क्योंकि दिल से उसे चाहता हूँ.


मैं कुछ भी कर नहीं पाता ,
जब उसके ख्यालों में खो जाता हूँ.


मिलने को मैं उससे,
कैसे पागल हो जाता हूँ...








No comments:

Post a Comment