किसको छोडूं,किसको चुनु,
कुछ समझ में नहीं आता.
ये कैसा कठिन काम है,
जिसको लेकर असमंजस में हूँ.
कहाँ जाऊं ,कहाँ नहीं,क्या करूँ क्या नहीं ,
क्या कहूँ क्या नहीं किससे कहूँ किससे नहीं .
वो बोल क्यों नहीं देती इस बस में हूँ,
मैं अपने ही दिल के नहीं वश में हूँ.
कितनी हसीनाओं को देखा है इन आँखों ने ,
किसी को दिल में नहीं उतार पाया.
किसकी तस्वीर लगाऊं इस दिल में ,
अब तक कुछ समझ नहीं पाया.
किसके दिल की धड़कन हूँ मैं,
समाया किसकी नस-नस में हूँ.
ये कैसा कठिन काम है,
जिसको लेकर असमंजस में हूँ.
कोई भी ऐसी नहीं मिली अब तक,
जो मुझे अपने काबिल लगे.
किसी की नज़रों में वो तीर नहीं मिला ,
जिससे वो मेरी कातिल लगे.
बच गया अगर मैं,
ज़माने-भर की नज़रों से.
अमर हो जाऊँगा,
बच जाऊँगा जुल्मी-कब्रों से.
मंजिल पर खड़ा होने पर भी,
क्यों चाहता हूँ अभी और आगे बढ़ना.
क्यों लगता है ऐसा मंजिल पाने को ,
अभी और ऊपर होगा चढ़ना.
कहाँ है मेरी मंजिल ,
क्यों मैं असमंजस में हूँ.
कौन है मेरी किस्मत में,कहाँ छुपी बैठी है.
क्या वजह है क्यों रूठी बैठी है.
आकर क्यों नहीं कहती येस मैं हूँ,
सबका चक्कर छोड़ ,तुझको अपना लूं.
पूरा हो जाये वो कठिन काम ,
जिसको लेकर असमंजस में हूँ..
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