कभी माली तो कभी मालिक मार जाते हैं,
हर कली फूल बनकर खिलती नहीं.
जिन्दगी के पहले ही मोड़ पर,
मंजिल हर किसी को मिलती नहीं.
कितनी ही कलियाँ हैं जिनको,
खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है.
कितनो को मंजिल कि तरफ जाने से पहले ही,
जुर्म की राह पर मोड़ दिया जाता है.
कितनी ही कलियाँ कड़ी धूप में,
बिन पानी के मुरझा जाती हैं.
कितनों की जिन्दगी जवां नहीं होती,
बचपन में ही नशे की आदत खा जाती है.
कलियाँ तो एक बारगी खिलकर भी,
अपनी खुशबू बिखेर जाती हैं.
खुशियाँ बचपन में आती है पल दो पल,
और मुंह फेर जाती हैं.
कितना अंतर है एक कली के,
फूल बनकर खिलने में.
और एक खूबसूरत बचपन को,
जवानी का साथ मिलने में.
हर किसी को महलों की रौनक मिलती नहीं.
हर कली फूल बनकर खिलती नहीं.
कितनी कलियाँ कड़ी धूप और तूफानों को ,
आसानी से सह जाती हैं.
मगर कुछ कलियाँ इतनी कोमल होती हैं ,
चंद बूँदों में ही बह जाती हैं.
कलियों की ही तरह जिन्दगी में,
हर किसी को मंजिल मिलती नहीं,
कभी माली तो कभी मालिक मार जाते हैं,
हर कली फूल बनकर खिलती नहीं..
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