Sunday 4 September 2011

146. बिन मंजिल के सीढ़ी चढ़ना


बिन मंजिल के सीढ़ी चढ़ना ,
नाहक साँस फुलाना है.


बिन उद्देश्य के कार्य करना,
हवा में तलवार चलाना है.


पहले सोचो फिर बोलो,
बुद्धिमान अगर कहलवाना है.


मेहनत करके खाना सीखो,
गर आलस्य दूर भगाना है.


छिना-झपटी छोड़ दो,
ईमानदार बन जाना है.


खूब खाओ मौज उड़ाओ,
ना रोगों से मर जाना है.


जिओ और जीने दो ,
ना आतंकवाद फैलाना है.


हम सबके सब अपने हैं,
नहीं कोई यहाँ बेगाना है.


जाति-पाती ,ऊँच-नीच,छुआ-छूत छोड़ दो,
नहीं कोई भेद अब रह जाना है.


ना ईश्वर,ना अल्लाह,ना ईसा-मशीह,
ना वाहे-गुरु ने देश चलाना है.


मानव है हम,सदा सखा इन्सान के,
मानव-धर्म फैलाना है.


नया सोचते रहें,नया,खोजते रहें,
नया अगर तुम्हें कुछ पाना है.


जन्म लिया है तो कुछ करके जाना,
ना बेकार ही मर जाना है.


बिन उद्देश्य के जीना भी बेकार है,
इससे अच्छा किसी के लिए मर जाना है.


बिन मंजिल के सीढ़ी चढ़ना,
नाहक साँस फुलाना है......



 


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