Sunday 4 September 2011

112. कि मैं दिल चोर हूँ


ये कोई नहीं जानता ,मेरा दिल भी नहीं मानता.
कि मैं दिल चोर हूँ, कि मैं दिल चोर हूँ.


सीधा-सादा आदमी नहीं, मैं कोई और हूँ.
कि मैं दिल चोर हूँ,कि मैं दिल चोर हूँ.


दिल चुराया है मैंने ,किसी अजनबी का.
दिल में उसके रहता हूँ ,मैं ना जाने कभी का.


कौन अजनबी है वो, ये मैं भी नहीं जानता.
ये कोई नहीं जानता ,मेरा दिल भी नहीं मानता.


दिल दुखाया है मैंने,कभी ना कभी किसी का.
दिल टूटा होता है हर एक कवि का.


दिल में झांके बिना उसके ,कोई नहीं पहचानता.
ये कोई नहीं जानता ,मेरा दिल भी नहीं मानता.


सीधा-सादा आदमी नहीं,मैं कोई और हूँ.
कि मैं दिल चोर हूँ,कि मैं दिल चोर हूँ...



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