Friday 2 September 2011

94.क्या खता हम से हो गई


हम इधर से अंदर आते हैं,
वो उधर से बाहर निकल जाते हैं .


क्या खता हम से हो गई ,
जो वो हमें इतना सताते हैं.


हम उनको हर बार उनकी मेहनत के लिए,
दिल से बधाई देते हैं.


एक वो हैं जो हमारा दिल दुखाने को ,
हर बार जुदाई देते हैं.


हम भी कम पागल नहीं ,
जो उनकी खता को भूल जाते हैं.


क्या खता हम से हो गई ,
जो वो हमें इतना सताते हैं.


कभी कहते हैं तुम्हारे लिए,
मेरे दिल में कोई जगह नहीं है.


तो कभी कुछ नहीं बकते हैं,
और अपनी देह से भी दूर रखते हैं.


रोते हैं जब तन्हाई में हमें याद करके ,
मनाने को हमें ही हर बार ,
दिल से मजबूर करते हैं.


ये मालूम ही नहीं पड़ता हमें,
कब उनकी बातों में आ जाते हैं.


क्या खता हमसे हो गई ,
जो वो हमें इतना सताते हैं.


हम इधर से अन्दर जाते हैं,
वो उधर से बाहर निकल जाते हैं.


क्या हो गया उनको जो,
दिनों-दिन दूर चले जाते हैं.


क्या खता हमसे हो गई,
जो वो हमें इतना सताते हैं..




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