Sunday 4 September 2011

124. मन से किसी का मेल नहीं


यहाँ तन की तमन्ना रखते हैं सब,
मन से किसी का मेल नहीं.


जब्त हों जिस्म के ठेकेदार जहाँ,
जहां में ऐसी कोई जेल नहीं.


खुद को खिलाड़ी समझते हैं सब ,
ये गुंडागर्दी है कोई खेल नहीं.


बहन-बेटियों पर गलत नज़र रखते हैं जो,
इन्सान के भेष में वहशी-दरिन्दे हैं वहीं.


यहाँ तन की तमन्ना रखते हैं सब,
मन से किसी का मेल नहीं.


जब किसी की लड़की जवान होती है,
भूखे-भेदियों के लिए बन जाती है रेल वही.


नहीं रख पाती मन-मंदिर में फिर किसी को,
धोखेबाज़ नज़र आते हैं उसको हर कहीं.


यहाँ तन की तमन्ना रखते हैं सब,
मन से किसी का मेल नहीं.


दिन-रात यही चाहत होती है इनकी,
 दिल में दूसरा आता कोई ख्याल नहीं.


जब भी मौका मिलता है इनको,
कर देते हैं उसी को बेहाल वहीं.


यहाँ तन की तमन्ना रखते हैं सब,
मन से किसी का मेल नहीं.


जब्त हों जिस्म के ठेकेदार जहाँ,
जहां में ऐसी कोई जेल नहीं....


 

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