Saturday 10 September 2011

190. अपना-अपना नसीब होता है

ये सब तो अपना-अपना नसीब होता है,
कब,कौन,किसके,कितना करीब होता है.


खून के रिश्ते बदलते देर नहीं लगती,
मगर मोहब्बत का रिश्ता कितना अजीब होता है.


मन मिल जाते हैं जब किसी के तो,
जात-पात,उंच-नीच के अंतर को नहीं देखा जाता.


सबके खून का रंग एक जैसा होता है ,
फिर भी खून के रिश्ते को दूर नहीं फेंका जाता .


जब बिछुड़ता है अपना कोई ,
जो अपना अजीज होता है .


दर्द होता है उसी को उतना,
जो जितना दिल के करीब होता है .


ये सब तो अपना-अपना नसीब होता है,
कब,कौन,किसके,कितना करीब होता है .


बुलाने से भी पास नहीं आता कोई तो,
कोई बिन चाहे दूर चला जाता है .


लाख हँसाने पर भी नहीं हँसता दिल कभी तो,
कभी बिन जलाये भी जला जाता है.


किसके हिस्से में खुशियाँ आती हैं,
और किसके हिस्से में गम सरीख होता है.


ये सब तो अपना-अपना नसीब होता है ,
कब,कौन,किसके,कितना करीब होता है.


किसी  के लाख चाहने पर भी कुछ नहीं मिलता तो,
किसी को बिन मांगे मौत मिल जाती है.


किसी को लाख चाहने पर भी प्यार नहीं मिलता तो,
किसी को बिन मांगे सौत मिल जाती है.


कब,किसको, कहाँ, क्या मिलता है ,
कोई बदनसीब,तो कोई खुशनसीब होता है ,


कब,कौन,किसके,कितना करीब होता है ,
ये सब तो अपना-अपना नसीब होता है.

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