Saturday 10 September 2011

170. क्या कद्र करे उनकी कोई,

                           क्या कद्र करे उनकी कोई,
जो अपने फर्ज से मुंह फेर जाते हैं.


कक्षा-कक्ष में जाकर भी नहीं पढ़ाते,
गर्व से राष्ट्र-निर्माता कहलाते हैं.


साथी अध्यपकों का वक्त बर्बाद करते हैं,
जब दफ्तर में साथ बैठाते हैं.


विद्यालय,विद्यार्थियों की नहीं कोई चिंता,
हर पल भ्रष्ट राजनीति की बतलाते हैं.


क्या कद्र करे उनकी कोई,
जो अपने फर्ज से मुंह फेर जाते हैं.


अपने काम से जो जी चुराते हैं,
वो ही कामचोर कहलाते हैं.


कमा कर खा नहीं सकते कभी,
औरों के आगे हाथ फैलाते हैं.


खुद तो बर्बाद होते ही हैं,
देश को भी गर्त में धकाते हैं.


क्या कद्र करे उनकी कोई,
जो अपने फर्ज से मुंह फेर जाते हैं.


"मुंह में राम बगल में छुरी ",
के सिद्धांत को अपनाते हैं.


कितनी ही गलत हो उनकी बात ,
मगर उसे ही सही ठहराते हैं.


निकलते हैं गलत अर्थ औरों की सही बातों का,
और औरों को आपस में लड़ाते  हैं .


जहाँ भी जाते हैं वहीँ पर ,
गंदगी फैलाते हैं.


क्या कद्र करे उनकी कोई,
जो अपने फर्ज से मुंह फेर जाते हैं....







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