Sunday 4 September 2011

137. ये सब तो दिलों का मेल होता है


जुडती नहीं रिश्तेदारी कभी पैसों से,
ये सब तो दिलों का मेल होता है.


कैसे की जाती है इज्जत किसी की ये जानना,
नहीं बच्चों का खेल होता है.


नहीं होती इज्जत कभी बिन बुलाये मेहमान की.
किसके पास होती है फुर्सत किसी के घर जाने की,


वो तो बुलाने वाले का प्यार होता है,
जो घर खींच लाता है राह चलते फकीर को.


वरना ये देखकर किसी के घर नहीं जाया जाता,
कि कैसी शान है इनके मकान की.


दूसरों की बुराई कर देना तो बहुत आसान होता है,
लेकिन कभी अपने अंदर झांककर तो देखिये,


कितना जानते हैं आप ,
इज्जत करना किसी इंसान की.


इज्जत करने से ही इज्जत मिलती है,
नहीं होती ये खैरात दी हुई किसी भगवान की.


इज्जत तो इंसान का प्यार होता है,
नहीं होती ये दौलत किसी हैवान की.


जब कोई आता है घर पर अपने,
हम उसे कितना प्यार देते हैं.


हमें भी जाना पड़ता है घर उनके,
तब वे अपना कर्ज उतार देते हैं.


यूं ही आने-जाने से न जाने कब,
हम प्यार के बंधन में बंध जाते है.


जुड़ जाती है फिर डोर प्यार की,
जीवन-भर के सम्बंध बन जाते है.


बन जाता है वह जान से प्यारा,
उसके प्यार का नहीं कोई मोल होता है.


जुडती नहीं रिश्तेदारी कभी पैसों से,
ये सब तो दिलों का मेल होता है.....






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