मेरी किस्मत का किस्सा .
किस-किस को सुनाऊं .
मेरी किस्मत है रूठी ,
किस दिन से बताऊँ.
वो दिन तो लगता ,
बड़ा हसीन था.
आँखों के सामने मेरे,
एक चेहरा कमसिन था.
चेहरे को देख के,
दिल उस पे था अटका.
किस्मत को मेरी उस दिन,किस्सा मेरी
लगा था बड़ा झटका.
फिर उसके घर गया मैं,
जो बारात लेकर.
घर अपने लौटा था उस रात,
मैं एक सौगात लेकर.
उस सौगात-संग जो सामान था आया,
जो लगता है मुझको अब भी पराया.
वो सामान इतना पुराना मिला था,
देखकर मेरा दिमाग हिला था.
ना जाने उस पे क्या जादू किया था,
मेरी किस्मत ने मुह मोड़ लिया था.
रिश्तेदार मुझको इतने घटिया मिले थे,
चमन में मेरे कांटे खिले थे.
धोखेबाज़ और दगाबाजों से,पाले पड़े थे,
उस दिन से मेरे घर में,
ताले जड़े थे .
अब घर मैं कहाँ बसाऊं,
जाऊं तो मैं कहाँ जाऊं .
मेरी किस्मत का किस्सा,
किस-किस को सुनाऊं..
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