Friday 2 September 2011

99. ये सोच-सोच कर मर गया


तुझे देखा तो खुशियों से मेरा दिल भर गया,
तुझे अपना बनाऊं या कभी ना अपनाऊँ ,
ये सोच-सोच कर मर गया.


बहुतों से हटकर हो तुम ये देखा है मैंने,
तो क्या हुआ कोई तुम से भी सुंदर है.


कितने ही चेहरे नज़रों के सामने आये और चले गए,
मगर तेरी सूरत आँखों के सामने दिल के अंदर है .


क्या तुझे देखकर मैं कोई खता कर गया.
तुझे अपना बनाऊं या कभी ना अपनाऊँ,
ये सोच-सोच कर मर गया.


कुछ अजीब से हालात में तुम मेरे दिल में बस गई,
ना जाने किस सोच के बल पर तुम मुझको जच गई.


क्या बताऊँ किसकी बद-दुआओं से डर गया,
तुझे अपना बनाऊं या कभी ना अपनाऊँ ,
ये सोच-सोच कर मर गया.


एक दिल चाहता है कि तुझे अपना लूं,
मगर दिल पर बोझ है और सुंदर साथी का सपना लूं.


तुम हकीक़त ये मैं भी जानता हूँ,
और सपनों से मेरा दिल भी भर गया .


तुझे अपना बनाऊं या कभी ना अपनाऊँ ,
ये सोच-सोच कर मर गया.


तेरा सब कुछ साफ-सुथरा और बड़ा प्यारा है,
एक तेरा मस्तक ही सबसे न्यारा है.


तेरा ये मस्तक ,मेरे दिल में क्यों नहीं देता दस्तक,
बस इतनी-सी उधेड़-बुन में फंस कर डर गया.


तुझे अपना बनाऊं या कभी ना अपनाऊँ,
ये सोच-सोच कर मर गया...





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