Sunday 4 September 2011

143. तेरा ये नया-नया अंदाज़


तेरा ये नया-नया अंदाज़,
करे बेकाबू मुझको आज.


तेरा यूं जुल्फों का लहराना,
लगे तिरंगे का फहराना.


तेरा यूं नज़रों का झुकाना,
खड़े करता है नये-नये फ़साना.


तेरा यूं नाक का चढ़ाना,
लगे सड़क का कोई मोड़ पुराना.


तेरा यूं होंठों का चबाना,
कहे नया कोई अफसाना.


तेरा कमर का यूं मटकाना,
बड़ा मुस्किल दिल समझाना.


ये तेरे नये-नये नाज़,
करे बेकाबू मुझको आज.


यूं मत खोलो दिल के राज़,
क्या-क्या कहेगा समाज.


थोड़ी रख ले मेरी लाज,
बंद कर ले अपनी आवाज.


तू जो बजाती है नये-नये साज़,
करे गाने को मजबूर मुझको आज.


तू जो करेगी रोज ऐसे ही काज,
बनवाना पड़ेगा तेरे लिए मुझे ताज.


मत मार सबको अपनी अदाओं से,
एक दिन खुद भी मारी जाएगी.


जिस दिन दुनिया से दूर जाएगी,
बदनाम मुझे कर जाएगी.


तेरा ये नया-नया अंदाज़,
करे बेकाबू मुझको आज....


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