Saturday 10 September 2011

158. जिनकी कोई कद्र नहीं


क्या करें विश्वास उनका ,
जिनकी कोई कद्र नहीं.


कैसे जीते हैं उनके अपने,
उनको कोई फ़िक्र नहीं.


बस काम है उनका तो पीना,
पीने का उनको सब्र नहीं.


एक पव्वा सुबह को पिया,
दोपहर की कसर रही.


शाम ढलते पेग पे पेग ,
रात हो गई मगर कुछ असर नहीं.


दिन-रात पीना ,ना आया जीना,
मरने तक का डर नहीं.


नहीं ख्याल बीवी-बच्चों का,
खुद का अपना घर नहीं.


बोतल के लिए बेच दिया सब,
पास थोडा- सा भी जर नहीं.


कर्ज पे कर्ज लिया इतना ,
बाल जितने सर पर नहीं.


मरने के सिवा ना कोई रास्ता,
पीना है जरुरी ,डरना मगर नहीं.


 जाएँ तो जाएँ कहाँ,
मधुशाला के सिवा कोई डगर नहीं.


मधुशाला ही हैं मंदिर उनका,
सूरा ही सुर सही.


सिवा इनके ना जाना कहीं,
पीना है तो जीना है ,गर नहीं.


क्या करें विश्वास उनका,
जिनकी कोई कद्र नहीं...






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