ना राम-लक्ष्मण जैसा भाई रहा,
ना कृष्ण-सुदामा जैसा यार रहा.
ना सीता-सावित्री जैसी पत्नी रही,
ना माँ की ममता,ना भाई-बहन का प्यार रहा.
ना सतयुग का वो संसार रहा,
बस मतलब का है व्यवहार रहा .
ना हरिश्चंद्र जैसा सत्यवादी रहा कोई,
ना गाँधी जैसा अंहिंसा का पुजारी रहा.
हर-रोज होती है घर-घर में महाभारत,
छल-कपट,खून-खराबा,हिंसा का दौर जारी रहा.
ना सुभाष जैसा कोई नेता रहा,
ना किसी में देशभक्ति का वो प्यार रहा.
हर-रोज होता है एक नया घोटाला,
लूटकर खजाना देश का,नेता घर भर रहा.
कैसा कलयुग आया है ,
दिन में भी घोर अँधेरा छाया है.
ना करते फिक्र किसी और की,
ना अपना ही भविष्य चमकाते हैं.
बच्चे आज के ना ज्योत जलाते हैं ज्ञान की.
जहाँ देखो बीडी-सिगरेट का धुआं फैलाते हैं.
दारू का ऐसा दौर चला है,
बच्चा-बूढ़ा हो या जवान,कोई ना होश में रह पाता है.
जिसको भी देखो वही,
नशे की गंगा में बहा जाता है.
यही वजह है कि हर कोई,
जिन्दगी की दौड़ में पीछे रह जाता है.
नशा छोड़ प्यार की ज्योत जला ले ,
कलयुग के इस दौर में भी सतयुग को बुला ले...
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