Friday, 2 September 2011

86.भविष्य के सपने


एक मैम बैठी है घर के अंदर अपने,
देख रही है भविष्य के सपने.


ना सोचती है वर्तमान के बारे में,
वर्तमान का उसे कुछ नहीं अच्छा लगता है.


वह तो देखती है दिन में भी सपने,
उसे ना जाने क्यों सपना सच्चा लगता है.


बस अब तो जिन्दगी उसकी ,
ख्वाब देखने में ही लगी है खपने.


एक मैम बैठी है घर के अंदर अपने,
देख रही है भविष्य के सपने.


सोचती है अपना एक अलग घर हो ,
वहां किसी के आने-जाने का ना डर हो.


खुलकर करुँगी प्यार संग में तेरे,
वहां ना उठाना पड़ेगा सुबह-सवेरे.


क्यों करूँ चिंता किसी और के सुख-दुःख की,
मैं तो सिर्फ तेरी हूँ ,तेरे संग लिए हैं फेरे.


क्या कमी रहेगी,जब तेरे संग प्यार में ,
लगेगी  मेरी जिन्दगी मौज से कटने.


एक मैम बैठी है घर के अंदर अपने,
देख रही है भविष्य के सपने.


बालम के बिना उसे ना कोई अच्छा लगता है,
अपना उसे ना बड़ा-बूढ़ा,ना कोई बच्चा लगता है.


मतलब की खातिर कुछ भी कर सकती है,
खुद के लिए जीती है,दूसरों को मार भी सकती है.


सपनों से निकलती है जब बाहर, 
हकीक़त में बेगाने लगते हैं ,उसे अपने,


एक मैम बैठी है घर के अंदर अपने,
देख रही है भविष्य के सपने... 






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