Friday, 2 September 2011

82. क्यों शौक बना लिया गजलों को


क्यों शौक बना लिया गजलों को ,
कोई इन्हें फुर्सत से पढ़ पाता नहीं.


पढ़ें भी तो क्यों पढ़ें,जो लिखता है इन्हें,
किसी को फूटी आँख भाता नहीं.


कोई कहता है बिन बटन का रेड़ियो,
तो कोई पागल कह जाता है.


किसी का वश नहीं चलता कहने पर,
अरमान दिल में लिए रह जाता है.


अवसर में रहते हैं ताना कसने के,
दिल से कोई मुझे चाहता नहीं.


क्यों शौक बना लिया गजलों को ,
कोई इन्हें फुर्सत से पढ़ पाता नहीं.


जिनके बारे में लिखा जाता है,
वो बिन पढ़े ही रह जाते हैं.


कोई उन्हें कितना चाहता है दिल से,
जीते जी नहीं जान पाते हैं.


कोई बताये या नहीं,हमें पाता चल जाता है,
बिन हमारे वो चैन से रह पाता नहीं.


क्यों शौक बना लिया गजलों को ,
कोई इन्हें फुर्सत से पढ़ पाता नहीं.


हम सुन भी नहीं पाते,
वो कब,क्या कह जाते हैं.


जब ध्यान लगते हैं सुनने को,
वो बिन कहे ही रह जाते हैं.


नजदीक से गुजर जाते हैं,नज़रें झुकाकर ,
चाहकर भी गले लगा पाता नहीं.


क्यों शौक बना लिया गजलों को ,
कोई इन्हें फुर्सत से पढ़ पाता नहीं.





 


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