Friday, 2 September 2011

80. मैं जीते जी ये नहीं चाहूंगी


घुट-घुट कर जीने से तो अच्छा है कि मौत आ जाये,
मैं जीते जी ये नहीं चाहूंगी कि मेरी सौत आ जाये.


जहाँ भी जी लगे रहना,मुझे कुछ भी कहना,
सब सहन कर लूँगी,रह लूँगी बिन गहना.


भगवान से करुँगी कामना,तुम पर मेरा प्यार छा जाये,
मैं जीते जी ये नहीं चाहूंगी कि मेरी सौत आ जाये.


तुम्हारा जी चाहे जो कर लेना,
चाहे सारा धन जी चाहे जिसे दे देना .


पर कभी ये सहन नहीं होगा कि,
तेरे तन-मन पर किसी और का अधिकार हो जाये,
मैं जीते जी ये नहीं चाहूंगी कि मेरी सौत आ जाये.


अपने को हीर तुझे अपना राँझा मानती हूँ,
मैं अपनी हर चीज को साँझा मानती हूँ.


कभी मत सोचना कि आपकी आँखों से दूर हूँ,
तन से दूर रहकर भी मन में जरुर हूँ.


तुम जो भी सोचते हो,सब जानती हूँ,
तुझे खुदा नहीं पर खुदा से कम भी नहीं मानती हूँ.


ऐसा कोई काम न करना कि शक की दीवार खड़ी हो जाये,
मैं जीते जी ये नहीं चाहूंगी की मेरी सौत आ जाये,
घुट-घुट कर जीने से तो अच्छा है की मौत आ जाये..





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