Friday, 2 September 2011

77. नारी तू सिर्फ नारी है


नारी तू सिर्फ नारी है,
तुझसे ना किसी की यारी है.


करे जो हरदम तेरी बड़ाई,
तू उसकी आभारी है.


अगर पढ़-लिखकर  तू,
कुछ बन जाती है,


चाहती है मुर्ख पति ,
उसपे राज चलाती है.


कहते हैं बड़े-बूढ़े,
दुश्मन नारी की नारी है.


नारी तू सिर्फ नारी है,
तुझसे ना किसी की यारी है.


पशु की तरह बाँधने से ही,
तुझे काबू कर पाते हैं.


इसीलिए करते हैं समझदारी,
बचपन में ही नाक-कान बिंधवाते हैं.


 क्योंकि जवानी में तो,
 ना रहती तू बेचारी है.


नारी तू सिर्फ नारी है,
तुझसे ना किसी की यारी है.


हर रोज कितनों को देती है धोखा,
प्यार का ढोंग रचाती है.


भागकर जाती है किसी और के संग,
ना जाने किस-किस को बदनाम कराती है.


जब करती है काम ऐसे ,
नहीं लगती किसी को प्यारी है.


नारी तू सिर्फ नारी है,
तुझसे ना किसी की यारी है.


तुझे चाहना मर्द की मजबूरी है,
तुम बिन वह जी नहीं पाता है.


एक पल तू दूर चली जाये तो,
गम के सागर में डूब जाता है.


तुम बिन जियें तो कैसे जियें,
ये बेचारे मर्द की लाचारी है.


नारी तू सिर्फ नारी है,
तुझसे ना किसी की यारी है.


करे जो हरदम तेरी बड़ाई,
तू उसकी आभारी है.






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