Friday, 2 September 2011

76.कुछ कदर ना जानी


किसी ने धोखा दिया प्यार में ,
मेरी कुछ कदर ना जानी.


किसी को कहा साथ निभाने को ,
लाख समझाया,मगर ना मानी.


मैं प्यार का भूखा ही रह गया,
मुझे प्यार देने कोई ना आई.


कोई शायद आएगी ही नहीं,
साथी है मेरी तो तन्हाई.


अब तो लगता है शायद ,
तन्हा ही पड़े जिन्दगी बितानी.


किसी ने धोखा दिया प्यार में ,
मेरी कुछ कदर ना जानी.


औरत मर्द की कमजोरी है और जरुरत भी,
कोई काली-कलूटी है तो कोई खूबसूरत भी.


कोई मेरी दुश्मन है तो कोई दीवानी है.
कोई जानी-पहचानी है तो अनजानी है.


लोगों ने लाख समझाया,साथी जरुरी है,
जिन्दगी जीने को,मैंने एक ना मानी.


किसी ने धोखा दिया प्यार में ,
मेरी कुछ कदर ना जानी.



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