Thursday, 1 September 2011

75. ओ! बेवफा


मेरे घर में ही तू रहती है ओ! बेवफा,
फिर मैं तुझसे दूर कैसे जाऊं ये बता.


मैं बजाता था गम-भरे गाने,
आँसूं तू बहाया करती थी.


जब तक मैं ना आया करता था,
खाना तू ना खाया करती थी.


जब इतना प्रेम था कभी अपना,
तो अब क्यों रहती है खफा-खफा.


मेरे घर में ही तू रहती है ओ! बेवफा ,
फिर मैं तुझसे दूर कैसे जाऊं ये बता.


ना जाने क्यों ऐसा लगता है,
तुझे चाहकर भी भूला नहीं पाएंगे.


ना कर सकेंगे दुश्मनी कभी तुमसे,
अपना कहकर तुझे कभी बुला ना पाएंगे.


तड़फना लिखा है तुझे देखकर जिन्दगी-भर,
किस्मत में नहीं मेरे वफ़ा.


मेरे घर में ही तू रहती है ओ! बेवफा,
फिर मैं तुझसे दूर कैसे जाऊं ये बता.


चाहती है दिल से तू गर मुझे,
तो थोड़ा-सा प्यार दे दे.


मत मर तू तडफा-तडफा कर,
मारना ही है तो जहर दे दे.


कभी प्यार से पास बुलाकर तो,
कभी गुस्से से दूर जाकर मत सता.


मेरे घर में ही तू रहती है ओ! बेवफा,
फिर मैं तुझसे दूर कैसे जाऊं ये बता...

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